हिमाचल प्रदेश के धरमशाला का मेकलोडगंज परिसर याने ‘मिनी ल्हासा’ कहलाता हैं. यहां तिब्बत की प्रतिकृति बनाने का प्रयास किया गया हैं. सन १९५९ में चीन से निर्वासित दलाई लामा जी को भारत में प्रश्रय देने के बाद उनको तथा उनके साथ के तिब्बती निर्वासितों को यही बसाया गया था.
इस मेकलोडगंज के ‘नोरबू हाउस’ में इस समय एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन चल रहा हैं, जिस में चीन के सारे विरोधी हिस्सा ले रहे हैं. चीन में लोकतंत्र की बहाली को लेकर यह सम्मेलन कल, १ मई तक चलेगा. इसे दलाई लामा भी संबोधित करेंगे.
कार्यक्रम की संयोजक, अमरीका में रजिस्टर्ड एक संस्था हैं, जो चीन में मानवाधिकारों को स्थापित करने के लिए संघर्षरत हैं. लेकिन भारत सरकार की सम्मति के बिना यह संमेलन असंभव था. इस संमेलन में तिब्बती विस्थापितों के अलावा मंगोलियन, चीन से निर्वासित ख्रिश्चन, तथा, हांगकांग, मकाऊ और ताइवान के प्रतिनिधि भी शामिल हैं.
चीन सरकार का जिन पर अत्यधिक खौफ हैं, ऐसे डॉ. यांग जियानली के संयोजन में ही यह सम्मेलन हो रहा हैं.
ऐसा कहा जा रहा हैं की डोलकुन इसा का वीसा रद्द होने के बावजूद भी उइगर समुदाय के कुछ नेता इस सम्मेलन में पहुचे हैं. इस सारे आयोजन में मीडिया को प्रवेश नहीं हैं.
पिछले दिनों जब उइगर नेता डोलकुन इसा का, चीन की असंतुष्ट नेत्री लू जिंगुह का तथा सामाजिक कार्यकर्त्ता रा वांग का वीसा भारत सरकार ने रद्द किया, तब भाजपा सरकार पर और विशेषतः प्रधानमंत्री मोदी जी पर फब्तियां कसी गयी. छप्पन इंच सीने का मजाक उड़ाया गया था.
लेकिन अब क्या कहा जाएगा..? चीन के प्रखर विरोध के बावजूद दुनिया भर के लगभग पचास, धुर चीन विरोधी, नेता इकठ्ठे होते हैं, चीन में लोकतंत्र की बहाली पर मंथन करते हैं, और यह सब भारत सरकार की सहमती से होता हैं…!
चीन ने तिब्बत हथियाने के बाद, पहली बार, भारत में चीनी विरोधियों का ऐसा प्रभावी सम्मेलन हो रहा हैं..!
इसे कहते हैं, स्वयंभू देश की स्वतंत्र विदेश नीति..!!
– प्रशांत पोळ
‘बौद्धिक दिवालियापन..!’
– प्रशांत पोळ
‘धरमशाला में चीन विरोध का शंखनाद’ यह पोस्ट ‘व्हाट्स अप’ पर, अनेक ग्रुप्स में खूब घूम रही हैं. अनेक प्रतिक्रियाएं आ रही हैं.
एक सज्जन ने मुझे इस पोस्ट को लिखने के कारण ‘intellectual banckrupt’ (बौध्दिक दिवालिया) कहा हैं. उनका कहना हैं की ‘भारत सरकार चीन के दबाव के आगे झुक गयी हैं. और ये जो सम्मेलन का आप जिक्र कर रहे हैं, यह कोई पहली बार थोडा ही हो रहा हैं. आठवी बार हो रहा हैं. इसके पहले छह बार कांग्रेस के शासन में हो चुका हैं’.
अब इसे मैं क्या कहूँ..? नितांत असत्य को आधार बनाकर, किसी राजनीतिक विचारधारा के तहत, भारत सरकार की घृणा करना और मात्र इसलिए तथ्यों को ठुकराना कहां तक सही हैं..?
धरमशाला यह तिब्बत के निर्वासित सरकार की राजधानी हैं. यहां, तिब्बत की स्वतंत्रता को लेकर अनेक सम्मेलन हुए हैं, होते रहते हैं. और आठ ही क्यूँ…? मैं तो ऐसे ११ / १२ सम्मेलनों की सूची दे सकता हूँ.
किन्तु उनमे फर्क हैं. ये सारे सम्मेलन (२८ दिसंबर, २०१२ के बहुचर्चित सम्मेलन को जोड़ते हुए), अकादमिक स्वरुप के थे. इनमे चीन से भगाएं गएं निर्वासितों को इस प्रकार से नहीं बुलाया गया था. तिब्बती दिवस के अवसर पर भी ऐसे अकादमिक सम्मेलन होते रहते हैं.
लेकिन अभी जो सम्मेलन धरमशाला के मेकलोडगंज में चल रहा हैं, वह राजनैतिक रंग में लिप्त हैं. इस सम्मेलन के संयोजक डॉ. यंग जियानली यह खुद अनेक वर्षों तक चीन के जेल में बंद थे और सन २००७ में, अमरीका तथा यूरोपियन महासंघ के भारी दबाव के कारण रिहा किये गए थे. चीन सबसे ज्यादा जिनसे चिढ़ता हैं, ऐसे व्यक्तियों में डॉ यंग शीर्ष पर हैं, और उन्हें भारत सरकार ने वीसा दिया हैं..!!
पहली बार तिब्बत की निर्वासित सरकार की राजधानी में, खुले आम दुनिया भर के चीन के विरोधी इकठ्ठे हो रहे हैं. प्रेस को दूर रखकर, चीन में लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं कैसी कायम हो, इस पर मंथन कर रहे हैं…! और चीन गुस्से से आग-बबूला होता जा रहा हैं..!!
मेरे छोटे से आलेख को ‘बौध्दिक दिवालियापन’ कहने वाले श्रीमान जी.. हर भारतवासी के लिए यह अत्यंत सुखद दृश्य हैं..!!
– प्रशांत पोळ