प्रशांत पोळ
मजबूत लोकतंत्र के लिए, मजबूत विपक्ष का होना अत्यधिक आवश्यक हैं, ऐसा मेरा मानना हैं.
लेकिन वर्तमान परिस्थिति में ऐसा होते मुझे दिखता नहीं हैं. देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी, कांग्रेस, दिनोदिन कमजोर होती दिख रही हैं. चूँकि सोनिया जी को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं, इसलिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं और कांग्रेस के प्रति सहानुभूति रखनेवालों की सारी आशाएं राहुल गाँधी जी पर केन्द्रित हुई हैं.
इन कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के दुर्भाग्य से श्रीमान राहुल गांधी अपनी हर एक गतिविधि से, वक्तव्य से और अदाओं से, अपनी अक्षमता उजागर करने में आगे रहते हैं.
कांग्रेस ने यूपीए-१ और यूपीए-२ में भी देश विघातक सांप्रदायिक शक्तियों से हाथ मिलाया था. केरल की मुस्लिम लीग और हैदराबाद की मजलिस-इ-इत्तेहादुल-मुसलमीन (एम् आई एम्) यह दोनों घोषित रूप से सांप्रदायिक दल हैं. ये दोनों ही यूपीए के दस वर्ष के शासन में सरकार का हिस्सा थे. मुस्लिम लीग को तो बाकायदा दस साल तक मंत्रि पद भी मिला..!
कांग्रेस के सिमटने का मुख्य कारण रहा हैं की कांग्रेस पूर्ण रूप से और घोषित रूप से सांप्रदायिक शक्तियों तथा मुस्लिम परस्त दल के रूप में पिछले कुछ वर्षों से सामने आई हैं. और इसलिए इस बहुसंख्यांक हिन्दू देश में, हिन्दू विद्वेष के कारण वह सत्ता से बेदखल होती गयी और कोने में दुबकती गई.
इंदिराजी के ज़माने में ऐसा नहीं था. वे बैलेंस बनाकर चलती थी. अस्सी के दशक में मणिपुर और नागालैंड के चुनावों में उन्होंने चर्च के समर्थन में खूब भाषण किये और और अपनी स्थिति मजबूत की. तो वही १९८३ के जम्मू-कश्मीर के चुनावों में इंदिराजी ने जम्मू इलाके में ऐसे गजब के हिंदुत्व के समर्थन में भाषण दिए, की शायद श्रीमान बाल ठाकरे जी भी ऐसी बाते न कह सके. उन्हें मालूम था, कश्मीर घाटी में तो फारुख अब्दुल्ला ही चुनकर आने वाले हैं, तो उन्होंने पूरा जोर हिन्दू बहुल जम्मू में लगाया था. इसका फल भी उन्हें मिला. फारुख अब्दुल्ला की सीटें ४७ से घटकर ४६ हो गयी, लेकिन कांग्रेस को जम्मू में जबरदस्त सफलता मिली. ११ से बढकर इस चुनाव में कांग्रेस की सीटें २६ हो गयी. नई नवेली पार्टी भाजपा और भीमसिंह की पेन्थर्स पार्टी का जम्मू में लगभग सफाया हो गया था.
ऐसी रणनीति तो राहुल बाबा के बस की लगती नहीं.
उनकी ही सरकार ने जिस देशद्रोही अफजल गुरु को फांसी पर लटकाया, उस फांसी का विरोध करने वालों के पक्ष में राहुल जी खड़े हो गए.
भारत को तोड़नेवाले नारे लगाने वालों के पक्ष में राहुल बाबा खड़े हो गए..!
इस देश की सवा सौ करोड़ जनता समझदार हैं. देशद्रोहियों के साथ खड़ी रहने वाली, उनकी पैरवी करने वाली कांग्रेस को जनता कभी भी माफ़ नहीं करेगी. उसे कभी चुनकर नहीं लाएगी…
लेकिन फिर भी स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र के लिए, मेरा मानना हैं की कांग्रेस की मजबूती आवश्यक हैं. और कांग्रेस की इस मजबूती के आड़ कौन आ रहा हैं..?
राहुल गाँधी..!
इसलिए मेरी कांग्रेस के निष्ठावान कार्यकर्ताओं से अपील हैं, की कांग्रेस की मजबूती के लिए, फिर से सत्ता में आने का रास्ता बनाने के लिए सबसे पहले राहुल गाँधी को कांग्रेस से बाहर किया जाय. क्या राहुल जी के रहते हमारे मध्य प्रदेश के कांग्रेसी मित्र कभी सत्ता का सुख भोग पायेंगे…?
क्या राहुल जी के रहते, कभी कांग्रेस पुनः दिल्ली की गद्दी पर बैठ सकेगी…?
असंभव.
इसीलिए, देश के लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए, मजबूत विपक्ष के लिए –
राहुल गाँधी का कांग्रेस के बाहर जाना ही देश हित में हैं..!
कांग्रेसियों, सोचो… और इस दिशा में आगे बढ़ो..!!
– प्रशांत पोळ